कोई साधु बनकर तो कोई साध्वी बनकर ठगी करने में व्यस्त

 

धार्मिक चोला पहनकर, बाबाओं और साध्वियों के वेश में फरेब 

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एक ओर भक्तों को, दूसरी ओर महंतों की संपत्ति को बना रहे निशाना

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नर्मदा केसरी की विशेष रिपोर्ट : कृपया सब्सक्राइब कीजिए 

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धार्मिक आस्था, श्रद्धा और सेवा के प्रतीकों के रूप में माने जाने वाले बाबाओं और साध्वियों की छवि पर अब स्वयं उनके ही बीच से निकल रहे धोखाधड़ी के मामलों ने गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। बीते कुछ समय में ऐसे दो गंभीर मामले सामने आए हैं — एक सिवनी मालवा के गोटियापुरा मोहल्ले का और दूसरा छिंदवाड़ा के कनकधाम आश्रम से जुड़ा — जिनमें बाबा और साध्वी के वेश में ठगों ने न केवल जनता की भावनाओं से खिलवाड़ किया, बल्कि बड़ी धनराशि की ठगी भी कर डाली।

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❖ मामला 1: गोटियापुरा में लाखों की ठगी, पुलिस रही निष्क्रिय

17 अप्रैल 2024 में सिवनी मालवा के गोटियापुरा क्षेत्र में दो स्वयंभू बाबाओं ने भविष्य बताने, दोषों का निवारण करने और पूजा-पाठ के बहाने वार्डवासियों को बहलाकर लाखों रुपए की ठगी कर डाली। स्थानीय लोगों ने जब उन्हें पकड़कर पुलिस के हवाले किया, तब उम्मीद जगी कि कानून अपना काम करेगा। लेकिन शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि पुलिस ने अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की, जिससे बाबा फिर से फरार हो गए। पीड़ितों में भारी आक्रोश है और वे प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल उठा रहे हैं।

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❖ मामला 2: कनकधाम आश्रम की साध्वी पर 90 लाख की जालसाजी का आरोप

छिंदवाड़ा जिले के कनकधाम आश्रम की स्वयंभू साध्वी लक्ष्मी दास, असली नाम रीना रघुवंशी, पर महंत कनक बिहारी दास की मृत्यु के बाद उनके बैंक खाते से 90 लाख रुपए जालसाजी कर निकालने का गंभीर आरोप है।

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16 जुलाई 2024 को चौरई थाने में दर्ज एफआईआर के अनुसार, साध्वी ने महंत की मृत्यु के पश्चात न केवल खुद को उत्तराधिकारी बताया, बल्कि उनके मोबाइल नंबर को दोबारा चालू कराकर OTP के माध्यम से बैंक खाते को भी नियंत्रित कर लिया।

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चौंकाने वाली बात यह है कि स्व. महंत कनकबिहारी दास ने किसी को बैंक खाते में नॉमिनी नहीं बनाया था, फिर भी इतनी बड़ी रकम निकाली जा सकी। नए महंत श्यामदास महाराज का दावा है कि महंत ने वसीयत में उन्हें उत्तराधिकारी बनाया था, लेकिन साध्वी ने उस वसीयत को दरकिनार कर पूरा खेल किया।

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संयुक्त पुलिस ऑपरेशन में चौरई थाना और शिवपुर थाना की पुलिस ने मिलकर चंदपुरा के पास से साध्वी लक्ष्मी दास को गिरफ्तार किया।

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❖ धर्म का चोला पहनकर पाप का व्यापार

ये दोनों घटनाएं यह साफ करती हैं कि धार्मिक वेशभूषा आज कुछ धोखेबाजों के लिए भरोसे का नकाब बन चुकी है। जहां एक ओर गली-मोहल्लों में बाबा बनकर आमजन से पैसे ठगे जा रहे हैं, वहीं बड़े आश्रमों में भी उत्तराधिकार और दान की राशि को लेकर षड्यंत्र और घोटाले खुलकर सामने आ रहे हैं।

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यह प्रश्न उठता है कि …

🥀क्या धार्मिक संस्थानों की आर्थिक गतिविधियों की कोई निगरानी नहीं होनी चाहिए?

🥀क्या प्रशासन तब ही जागेगा जब जनता खुद सड़क पर उतरेगी?

🥀और सबसे जरूरी – क्या श्रद्धा का विश्वास अब ठगों के लिए सबसे आसान निशाना बन गया है?

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इन दोनों प्रकरणों से स्पष्ट है कि चाहे वह बाबा हों या साध्वी — यदि सिस्टम की पकड़ ढीली रहेगी, तो धर्म के नाम पर अपराध फलते-फूलते रहेंगे।

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जनता को भी चाहिए कि वे श्रद्धा के नाम पर अंधभक्ति न करें और हर धार्मिक व्यक्ति या संस्था पर सवाल करने का साहस रखें। वहीं प्रशासन और पुलिस को चाहिए कि ऐसे मामलों में त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई कर समाज में भरोसे को टूटने से बचाएं।

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