आवली घाट से निकली कावड़ यात्रा सोमवार को पहुंचेगी तिलक सिंदूर
नर्मदा जल से होगा तिलक सिंदूर में शिव अभिषेक
🚩 16 वर्षों से सतत जारी है आंवली घाट से कावड़ यात्रा
🪷 ✍🏻 नर्मदा केसरी संवाददाता, सिवनी मालवा
🪷
सिवनी मालवा। श्रद्धा, भक्ति और सेवा भावना की मिसाल बनी मां नर्मदा कावड़ यात्रा इस वर्ष अपने १६वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। ब्रह्मलीन संत उमानाथ जी महाराज के सानिध्य में प्रारंभ हुई यह यात्रा अब एक स्थायी धार्मिक परंपरा का रूप ले चुकी है। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी गजानन आश्रम, आंवली घाट से मां नर्मदा का पूजन अर्चन कर भगवान शिव के अभिषेक हेतु तिलक सिंदूर मंदिर के लिए कावड़ यात्रा रवाना हुई।
🪷🪔🪷
पूजन अर्चन के साथ हुआ शुभारंभ
रविवार प्रातः काल संत आचार्य पुरुषोत्तम दास जी महाराज, संत गोविंदराम जी शास्त्री एवं संत अनंतवन जी महाराज की उपस्थिति में मां नर्मदा को चुनर ओढ़ाकर कावड़ियों ने मां का विधिपूर्वक पूजन किया। कन्या पूजन एवं चुनरी अर्पण के बाद हर-हर महादेव के जयघोष के साथ श्रद्धालु कावड़ियों का जत्था रवाना हुआ।
🚩🪔🚩
45 किलोमीटर की पदयात्रा
यह यात्रा आंवली घाट से आरंभ होकर तिलक सिंदूर मंदिर तक करीब ४५ किमी की दूरी तय करेगी। इस पवित्र यात्रा का मार्ग हथनापुर, बुडारा कला, गोंडी खरार, चौतलाय, झिल्लाय, उड़ारी, कोटलाखेड़ी, जीजलवाड़ा, धर्मकुंडी, सतवासा, हिरणखेड़ा, मकोडिया होते हुए ढाबा कला तक पहुंचता है, जहां रात्रि विश्राम एवं भोजन की व्यवस्था रहेगी।
🥀🪔🥀
स्वागत में उमड़ा जनसैलाब
Oplus_16908288
पूरे मार्ग में गांव-गांव के निवासियों ने कावड़ियों का फूल-मालाओं, जलपान, फल वितरण और मां नर्मदा के पूजन के साथ स्वागत किया। कहीं चाय-नाश्ता, कहीं फलों का वितरण, तो कहीं श्रद्धा से पूरित अर्चना और आरती की गूंज से पूरा क्षेत्र भक्तिमय हो गया।
🪷🔥🪷
समिति के प्रमुख सहयोगी
इस यात्रा को सफल बनाने में मां नर्मदा कावड़ यात्रा समिति की महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिनमें प्रमुख रूप से संरक्षक महेश गोयल, संयोजक रामजीवन साध, राम यादव, महेश सरदार, प्रकाश कुशवाह, श्रीराम नागर, जयनारायण मानवीय, रविन्द्र छिरेले, राजा लोवंशी, राममोहन पटेल, विजय सुननिया, राममोहन शर्मा आदि का विशेष योगदान रहा।
🚩🚩🔥🚩🚩
अंतिम पड़ाव : तिलक सिंदूर
सोमवार को कावड़ यात्रा तिलक सिंदूर मंदिर पहुंचेगी, जहां नर्मदा जल से भगवान शंकर का महाभिषेक किया जाएगा। यह पावन यात्रा सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि ग्राम्य संस्कृति, श्रद्धा और एकता का प्रतीक बन चुकी है।