मासूम बालिका के दुष्कर्मी को फांसी

6 वर्षीय मासूम बालिका के साथ दुष्कर्म कर हत्या के आरोपी को फांसी की सजा

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सिवनी मालवा की अदालत ने 88 दिन में दिया ऐतिहासिक फांसी की सजा का फैसला

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न्यायालय ने भी कविता की करने की पंक्तियां प्रस्तुत कर प्रकट की संवेदना

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सिवनी मालवा बार काउंसिल ने पर भी न करने का लिया था संकल्प

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39 साक्षी, 96 दस्तावेज, 33 आर्टिकल, डीएनए रिपोर्ट के सघन अध्ययन के बाद हुआ फैसला

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नर्मदा केसरी के लिए विजय सिंह ठाकुर की विशेष रिपोर्ट

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सिवनी मालवा । 2 जनवरी की रात 6 वर्षीय एक मासूम बालिका को सोई हुई हालत में अपने घर से अपहरण कर उसके साथ दुष्कर्म कर हत्या करने वाले आरोपी अजय को प्रथम अपर सत्र न्यायालय के न्यायाधीश श्रीमती तबस्सुम खान ने फांसी की सजा दे दी । न्यायालय द्वारा तुरंत न्याय दिलाने का यह पहला मामला है जब 88 दिन में न्यायालय ने फैसला देते हुए आरोपी को फांसी की सजा सुनाई । 

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 प्रथम अपर सत्र न्यायालय सिवनी मालवा श्रीमति तबस्सुम खान ने 11 अप्रैल 2025 को मानवता को शर्मसार कर देने वाला सनसनीखेज दुष्कर्म एवं हत्या के मामले में आरोपी अजय को दुष्कर्म एवं हत्या के अपराध के लिए धारा 137(2), 64, 65(2), 103(1), 66 बीएनएस 5 (एम), 6 पॉक्सों में मृत्युदंड एवं 3000 रुपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया । इसी के साथ पीडिता के माता-पिता को चार लाख रूपये का प्रतिकर स्वरूप दिये जाने का आदेश पारित किया । संभव बताइए पहला मामला है जब अत्यंत मार्मिक प्रकरण में 88 दिन के अंदर प्रकरण की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने पीड़ित परिवार को तुरंत न्याय देते हुए आरोपी को फांसी की सजा सुनाई ।

 

घटना इस प्रकार थी

जिला अभियोजन अधिकारी राजकुमार नेमा ने बताया कि फरियादी द्वारा थाना उपस्थित होकर रिपोर्ट दर्ज कराई कि घटना दिनांक 02.01.2025 के शाम 04.00 बजे मैं अपनी पत्नि और तीनों बच्चियों के साथ अपने ससुराल गया था। मैं अपने बच्चो को ससुराल में छोड़ा और वापिस अपने गांव पैसे और टार्च लेने गया था, लोटकर रात्रि 08.30 बजे जब मैं ससुराल पहुंचा तो मेरी पत्नि ने बताया कि अजय का शराब के नशे में ससुराल में पलंग के नीचे सो रहा था जिसे मैंने और मेरे भाई ने उसे वहां से भगाया वह कह रहा था कि एक लड़की मुझे दे दो तो मैंने कहा कि ऐसी बात क्यों कर रहा है तू यहाँ से जा और मैंने बच्चों को खाना खिलाकर सुला दिया । मैंने करीब 09.00 बजे कमरे में जाकर देखा तो मुझे मेरी बच्ची (पीड़िता) नहीं दिखी तब मैंने बच्ची को पूरा गांव व आसपास में तलाश किया नहीं मिली। मेरी 6 वर्ष की नाबालिग बच्ची को कोई अपहरण कर ले गया है मुझे शंका है कि अजय ही मेरी बच्ची को उठाकर ले गया है। विवेचना के दौरान आरोपी अजय को अभिरक्षा में लेकर पूछताछ की । अजय ने अपने कथन में स्वीकार किया कि वह पीडिता को उसके घर से उठाकर ले गया था और झाडियों में ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया जब वह चिल्लाई तो उसका मुंह दबाकर उसकी हत्या कर दी और शव को झाडियों में फेंक दिया।

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आरोपी अजय के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य होने से अंतिम प्रतिवेदन धारा 137 (2), 64, 65(2), 103(1), 66, बीएनएस, 5 (एम), 6 पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत न्यायालय में पेश किया गया। विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा 39 साक्षी परीक्षित कराये गये सभी ने घटना का समर्थन किया। अभियोजन ने कुल 96 दस्तावेज एवं 33 आर्टिकल भी प्रदर्शित कराये एवं सकारात्मक डीएनए रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। शासन की ओर से पक्ष विशेष लोक अभियोजक श्री मनोज जाट द्वारा रखा गया। आपको बता दें कि इस अत्यंत मार्मिक और मानवता को संसार कर देने वाली घटना पर सिवनी मालवा अभिभाषक मंडल ने इस प्रकरण में पर भी न करने का संकल्प लिया था तब न्यायालय ने आरोपी के पक्ष में अधिवक्ता उपलब्ध कराया था ।

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 न्यायालय ने अपने निर्णय में पीडिता के संबंध में अति संवेदित पंक्तियाँ लेख की है ..

2 से 3 जनवरी 2025 की थी वो दरमियानी रात, जब कोई नहीं था मेरे साथ।

इठलाती, नाचती छः साल की परी थी, मैं अपने मम्मी-पापा की लाड़ली थी।

सुला दिया था उस रात बड़े प्यार से माँ ने मुझे घर पर, पता नहीं था नींद में मुझे ले जाएगा।

“वो” मौत का साया बनकर। जब नींद से जागी, तो बहुत अकेली और डरी थी मैं, 

सिसकियों ले लेकर मम्मी-पापा को याद बहुत करी थी मैं। 

न जाने क्या-क्या किया मेरे साथ, मैं चीखती थी, चिल्लाती थी, लेकिन किसी ने न सुनी मेरी आवाज। 

थी गुडियों से खेलने की उम्र मेरी, पर उसने मुझे खिलोनी बना दिया।

“वो” भी तो था तीन बच्चो का पिता, फिर मुझे क्यों किया अपनो से जुदा। 

खेल खेलकर मुझे तोड़ दिया, फिर मेरा मुंह दबाकर, मरता हुआ झाडियों में छोड़ दिया। 

हां, मैं हूं निर्भया, हां फिर एक निर्भया, एक छोटा सा प्रश्न उठा रही हूँ …

जो नारी का अपमान करे, क्या वो मर्द हो सकता हैं, क्या जो इंसाफ निर्भया को मिला, वह मुझे मिल सकता हैं ..?

श्रीमती तबस्सुम खान (विशेष न्यायाधीश) ने अपने निर्णय में पीडिता के संबंध में पंक्तियाँ लेख की है ।

वो छोटी सी बच्ची थी, ढंग से बोल ना पाती थी। देख के जिसकी मासूमियत, उदासी मुस्कान बन जाती थी।।

जिसने जीवन के केवल, पांच बसंत ही देखे थे। उसपे ये अन्याय हुआ, ये कैसे विधि के लेखे थे।

एक छः साल की बच्ची पे, ये कैसा अत्याचार हुआ। एक बच्ची को बचा सके ना, कैसा मुल्क लाचार हुआ।

उस बच्ची पे जुल्म हुआ, वो कितनी रोई होगी। मेरा कलेजा फट जाता है, तो माँ कैसे सोयी होगी।

जिस मासूम को देखके मन में, प्यार उमड़ के आता है। देख उसी को मन में कुछ के, हैवान उत्तर क्यों आता है।

कपड़ों के कारण होते रेप, जो कहे उन्हें बतलाऊ मैं। आखिर छः साल की बच्ची को, साड़ी कैसे पहनाऊँ मैं।

अगर अब भी हम ना सुधरे तो, एक दिन ऐसा आएगा। इस देश को बेटी देने में, भगवान भी जब घबराएगा।।

मृतक पीडिता के संबंध में कवि की यह पंक्तियां अभियोजन मनोज जाट, एडीपीओ/विशेष लोक अभियोजक द्वारा अंतिम बहस में अपनी संवेदना किस प्रकार प्रगट की ।

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